स्वप्न सुंदरी
वनमध्य तालाब के अस्थिर जल में
चन्द्रिका की सुन्दर आभा सी ,
स्वप्न में आते तुम
हरदिन, मेरे, धुंधले साया सी |
स्तभ्ध आकाश में पूर्ण चन्द्र को जैसे
आवृत करती, रात्रि कृष्णता चतुर्दिशा से,
दुग्ध श्वेत तेरे मुख को सुशोभित
कृष्ण ओढ़नी है, प्रकीर्णित, पवन से |
सीमित प्रकाश में भी द्युतिमान है
दूर, तेरा शरीर, तेरे मुख के ओज से,
शत कँचपृष्ठों से प्रतिम्बित किरणों के योग हो
महल रोशन होता, जैसे लघु दीप का प्रकाश से |
मुस्कुराते तुम जो देख मुझे ,
और जो छूने को हाथ बढाता मैं यूँ,
पलकों के हिलने से बनी हवा झकोरो से
मिट जाते तुम, जल से स्वर्णाभा ज्यूँ ||
वनमध्य तालाब के अस्थिर जल में
चन्द्रिका की सुन्दर आभा सी ,
स्वप्न में आते तुम
हरदिन, मेरे, धुंधले साया सी |
स्तभ्ध आकाश में पूर्ण चन्द्र को जैसे
आवृत करती, रात्रि कृष्णता चतुर्दिशा से,
दुग्ध श्वेत तेरे मुख को सुशोभित
कृष्ण ओढ़नी है, प्रकीर्णित, पवन से |
सीमित प्रकाश में भी द्युतिमान है
दूर, तेरा शरीर, तेरे मुख के ओज से,
शत कँचपृष्ठों से प्रतिम्बित किरणों के योग हो
महल रोशन होता, जैसे लघु दीप का प्रकाश से |
मुस्कुराते तुम जो देख मुझे ,
और जो छूने को हाथ बढाता मैं यूँ,
पलकों के हिलने से बनी हवा झकोरो से
मिट जाते तुम, जल से स्वर्णाभा ज्यूँ ||