प्रयत्न
मंजिले खोयी नहीं जाती, धुंधलाती रोशनी-ए-मशालो में ,
इश्क भुलाया नहीं जाता, साकी के पैमानों में |
समुद्र का सूरज तो रोज पानी में डूब के भी ऊपर आता है
क्यूंकि जिंदगी हारी नहीं जाती, उम्र के ढलालो में ||
उमीदे टूट जाती है विलापो से, ख़ुशी के ठहाको से नहीं ,
जंग जीती जाती है वफ़ा से, सैन्य लड़ाको से नहीं |
चक्रव्यूह के दरवाजो पर चाहे बैठा दो, दस महारथी,
भेदने से थमते;नहीं, अर्जुन के बेटे इनके प्रहारों से नहीं||
सब कुछ हार गए तो क्या, क्यूँ तुम; निराश; हो |
सृष्टि थी समाप्त, जब जग था पूर्ण जल मग्न ,
क्या हारे थे मनु, भूल कर पुनःसृजन का स्वप्न,
उठो, स्मरण रहे मनु पुत्र हो तुम , तुम; मनुष्य हो ||
शत प्रयत्न असफल हुए; तो क्या , तुम; नही; असफल हो |
भागीरथ रुक जाते, तो वंचित रह जाता जग भागीरथी के अवतरण से|
बुझते दिए की लौ भी आंखिरी सांस चीख के लेती है,
छोड़ असफलता का मोह, मनुज, अनिराश तू फिर प्रयत्न कर ||
मंजिले खोयी नहीं जाती, धुंधलाती रोशनी-ए-मशालो में ,
इश्क भुलाया नहीं जाता, साकी के पैमानों में |
समुद्र का सूरज तो रोज पानी में डूब के भी ऊपर आता है
क्यूंकि जिंदगी हारी नहीं जाती, उम्र के ढलालो में ||
उमीदे टूट जाती है विलापो से, ख़ुशी के ठहाको से नहीं ,
जंग जीती जाती है वफ़ा से, सैन्य लड़ाको से नहीं |
चक्रव्यूह के दरवाजो पर चाहे बैठा दो, दस महारथी,
भेदने से थमते;नहीं, अर्जुन के बेटे इनके प्रहारों से नहीं||
सब कुछ हार गए तो क्या, क्यूँ तुम; निराश; हो |
सृष्टि थी समाप्त, जब जग था पूर्ण जल मग्न ,
क्या हारे थे मनु, भूल कर पुनःसृजन का स्वप्न,
उठो, स्मरण रहे मनु पुत्र हो तुम , तुम; मनुष्य हो ||
शत प्रयत्न असफल हुए; तो क्या , तुम; नही; असफल हो |
भागीरथ रुक जाते, तो वंचित रह जाता जग भागीरथी के अवतरण से|
बुझते दिए की लौ भी आंखिरी सांस चीख के लेती है,
छोड़ असफलता का मोह, मनुज, अनिराश तू फिर प्रयत्न कर ||
English fonts:
ReplyDeletePrayatna:
manjile khoyi nahi jati dhundhalati roshani-e- mashalo mein.
ishq bhulaya nahi jata, saki ke paimano mein.
samudra ka suraj to roj pani mein doob ke bhi ooper aata hai.
kyunki jindagi hari nahi kati, umr ke dhalalo mien.
ummede tut jati hai vilapo se, khushi ke thahako se nahi
jang jeeti jati hai wafa se, sanya ladako se nahi
chakravyuh ke darwaje par chahe baitha do das maharathi
bhedane se thamate nahi, arjun ke bete, inke praharo se, nahi
sab kuch har gaye to kya, kyun tum nirash ho
srishti thi samapt, jab jag tha pruna jal magna
kya hare the manu, bhool kar punah srijan ka swapn
utho, smaran rahe manu putra ho tum, tum manushya ho
shat prayatn asafal huye to kya, tum nahi asafal ho.
bhagirath ruk jate to, vanchit rah jata jag bhagirath ke awatarn se
bhujate diye ki lau bhi saand cheekh ke leti hai.
chhod asafalta ka moh, manuj, anirash tu fir prayatna kar.
that was really a huge compliment.. thanks tatsat :)
ReplyDeletereally awesome poem :) :) yar tum to bahut acche poet ho :)
ReplyDeletebahut acha hai ......particularly.....srishti thi samapt, jab jag tha pruna jal magna
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