Tuesday 24 January 2012

Anupama

अनुपमा

खुशबू सी  बिखरती   तेरी  मुस्कान  है,  फ़लक  तक 
झिलमिलाती है  नभ की  आभा,  तेरे ओंठो  से  पलक  तक 
सौंदर्य की क्या तारीफ करें, तुम सितारों की झलक हो 
अनुपमा हो तुम, तेरी उपमा  की अप्सराओ को  ललक है ||

रक्त तृप्त तेरे ओष्ठो से प्रतिबिंबित रश्मि से जीवन का प्रभात है 
तेरे प्रकाश में ही केवल,  मेरा जीवन प्रारंभ  और समाप्त है
कल्पना में तुम हो और सचाई  में , तेरा रूप हर जगह है 
भूल कैसे सकता तुम्हे,  जब सब तेरे रंग में ही रंगा है ||

नदी के बहते जल सा मचलता हुआ तेरा मन है 
जैसे धूप में चमकता निर्मल सुन्दर श्वेत वसन है 
मासूमियत है तेरे हर एक अंग में समायी है 
अनुपमा हो तुम, तुम जैसी रब ने एक ही बनायीं  है ||

नेत्र में स्पष्ट दिखती, हृदय की सरलता है 
तेरे कहे हर शब्द में मकरंद सी मधुरता है
तेरी एक पुकार में बर्फ क्या पत्थर भी पिघलता है 
अनुपमा हो तुम, पूर्णता तुम्हारी ही संकल्पना है ||

Tere Nishan

तेरे निशाँ 

फिर से जिंदगी के उस मुकाम पर खड़ा हूँ |
सवाल तो कई है लेकिन जवाबो का पता नहीं |
वफ़ा तो याद, पर ना मालूम, कि क्या खता रही |
जो पता तूने दिया खुद, उस पर ही तेरा पता नहीं ||

इतनी दूर यूँ चला आया मैं, तेरे इश्क में थी ऐसी इबादत,
आँखों में  बेताबी थी और दिल में सिर्फ मोहब्बत |
तू ना थी साथ और पथ पर आई बहुत सी रुकावट ,
गम ना था उस दर्द का, केवल एक है अब शिकायत,
मजिल पर तो मैं पहुँच गया लेकिन तेरा कोई निशाँ नहीं ,
जो पता तूने दिया खुद,  उस पर ही  तेरा पता नहीं ||

नभ पर सप्तऋषि सा, तुम्हारे जीवन का संकेत तो दिखता है, 
उस दिशा में देखू तो ना ध्रुव, ना  कोई अवशेष झलकता है  |
तुम आये थे तो  इस ओर, तेरे पैरो के निशान मैं जानता हूँ |
तुम रोये थे, मिटटी के मिली तेरे आंसूओ  की खुशबू मैं पहचानता हूँ  |
तेरी हर एक बात मुझे याद, तड़पा सता रही ,
जो पता तूने दिया खुद, उस पर ही  तेरा पता नहीं ||

सफ़र तो था साथ किया शुरू, प्यार ही था केवल एक कायदा |
ना जाने कब बिछड़े  तुम, पर फिल मिलने का था एक वायदा |
मेरे आने में थोड़ी देर हुई, क्या उसकी ऐसी सजा मिली | 
इंतजार  तो अभी भी करेंगे, हार मानने की अभी रजा नहीं | 
अनजान पंक्षियों को सुनने की कोशिश करता, शायद ये कुछ बता रही, 
जो पता तूने दिया खुद,  उस पर ही  तेरा पता नहीं ||

- अभिषेक कुमार गुप्ता