Friday 12 October 2012

प्रयत्न: Effort

प्रयत्न

मंजिले खोयी नहीं जाती, धुंधलाती रोशनी-ए-मशालो में ,
इश्क भुलाया नहीं जाता, साकी के पैमानों में |
समुद्र का सूरज तो रोज पानी में डूब के भी ऊपर आता है
क्यूंकि जिंदगी हारी नहीं जाती, उम्र के ढलालो में ||

उमीदे टूट जाती है विलापो से, ख़ुशी के ठहाको से नहीं ,
जंग जीती जाती है वफ़ा से, सैन्य लड़ाको से नहीं |
चक्रव्यूह के दरवाजो पर चाहे बैठा दो, दस महारथी,
भेदने से थमते;नहीं, अर्जुन के बेटे इनके प्रहारों  से नहीं||

सब कुछ हार गए तो क्या, क्यूँ तुम; निराश; हो |
सृष्टि थी समाप्त, जब जग था पूर्ण जल मग्न ,
क्या हारे थे मनु, भूल कर पुनःसृजन का स्वप्न,
उठो, स्मरण रहे मनु पुत्र हो तुम , तुम; मनुष्य हो ||

शत प्रयत्न असफल हुए; तो क्या , तुम; नही; असफल हो |
भागीरथ रुक जाते, तो वंचित रह जाता जग भागीरथी के अवतरण से|
बुझते दिए की लौ भी आंखिरी सांस चीख के लेती है,
छोड़ असफलता का मोह, मनुज, अनिराश तू फिर प्रयत्न कर ||

Tuesday 24 April 2012

स्वप्न सुंदरी

स्वप्न सुंदरी
 

वनमध्य तालाब के अस्थिर जल में
चन्द्रिका की सुन्दर आभा सी ,
स्वप्न में आते तुम
हरदिन, मेरे, धुंधले साया सी  |


स्तभ्ध आकाश में पूर्ण चन्द्र को जैसे
आवृत करती, रात्रि कृष्णता चतुर्दिशा से,
दुग्ध श्वेत तेरे मुख को सुशोभित
कृष्ण ओढ़नी  है, प्रकीर्णित, पवन से |


सीमित प्रकाश में भी द्युतिमान है
दूर, तेरा शरीर, तेरे मुख के ओज से,
शत कँचपृष्ठों से प्रतिम्बित किरणों के योग हो 
महल रोशन होता, जैसे लघु दीप का प्रकाश से |

मुस्कुराते तुम  जो  देख  मुझे ,
और जो छूने को हाथ बढाता मैं यूँ,
पलकों के हिलने से बनी हवा झकोरो  से
मिट जाते तुम, जल से स्वर्णाभा ज्यूँ   ||

Sunday 1 April 2012

Some Shayaris/Shorts Verses


बस इसका ही तो सुकून कि आप साथ हो इस रस्ते पे |
मंजिल की उम्मीद तो ना जाने कब छोड़ दी थी हमने ||

अपनी खूबसूरती तुम क्या जान पाओगे ऐ हसीन
आखिर आईने की भी तो एक हद होती है ||

आपके प्यार का कुछ ऐसा असर हुआ , बिन होश हम कुछ कहते रहे |
वोह तो आपके हुस्न की काबिलियत थी , जिसने उसे शायरी बना दिया ||

आँखों से कह दिया तुने जो जुबाँ कह न सकें,
तेरी पूजा कर ली मैं , जब मिल हमसे रब न सकें,
बिना कहे दिल की बात समझ ले तू ताकि कहना न पड़े,
जन्मो के बंधन निभा ले अभी , ताकि फिर से जन्म लेना न पड़े |

तुम्हारी बातों की मधुरता के सामने, सीमित लगे यह मधुर रात्रि भी
तेरे संग बिताये पलो के सामने, लगे संपूर्ण जीवन भी क्षण मात्र सी
सुशोभित है  नभ में चन्द्र, किन्तु वो  तो कभी  घटता - बड़ता है   |
तुम्हारा रूप तो पूर्णिमा केवल,  हर  दिन नया  निखरता है ||


तेरे जीवन के हर साँस पर गीत नए मैं लिखता था
तेरे नेत्रों के क्षोरो पर संग जीने के ख्वाब नित बुनता था
तेरे अधरों के गहराई में, मेरे प्राणों को आधार मिला
तेरे केशो की कृष्णता में, मेरे जीवन का सप्त रंग झलकता था

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तेरे जाने के बाद तो , वक़्त थम सा गया है,
गम कैसे छुपाये जब आँखों में ही पानी है |
तुझे देखे बिना तो सदिया बीती, लेकिन
तेरी छवि आँखों में कल जीतनी पुरानी है ||

एक आंसू काफी है खुशियों के युगों को भुलाने के लिए
एक मोहब्बत काफी है, जिंदगी से मोहब्बत मिटाने के लिए ||

पेड़ो के हर वर्तिकाग्रो से निकलती नयी शाखाये , हर पल बहता पानी
हर कोने से अब निकलती है नयी कहानी , हर मोड़ पे बदलती जिंदगानी ||

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चाहते जिसे हम हमेशा से थे, दूर वोह ही कर गए हमें 
अपना मानते जिन्हें अपने पराये ही कर गए वोह 
मेरे दिल को मेरे दिल से दूर करके 
मेरे दिल ने ही मेरा दिल जला दिया 

शमा हो या ही परवाना 
बुझ जाना है किसी को या जल जाना 
कब ख़तम हो जाये कौन सा किस्सा कहा , लेकिन जीना तो 
वही जब दिल-ए -जहाँ का मिल जाना



कमजोर न समझ, मस्तिष्क ! मुझे 
कोमल हुआ तो क्या शत अश्वो का बल रखता हूँ 
रक्त देख पिघलता हूँ तो क्या , मैं हृदय हूँ 
रक्त से ही खोलता भी मैं ही हूँ

Tuesday 24 January 2012

Anupama

अनुपमा

खुशबू सी  बिखरती   तेरी  मुस्कान  है,  फ़लक  तक 
झिलमिलाती है  नभ की  आभा,  तेरे ओंठो  से  पलक  तक 
सौंदर्य की क्या तारीफ करें, तुम सितारों की झलक हो 
अनुपमा हो तुम, तेरी उपमा  की अप्सराओ को  ललक है ||

रक्त तृप्त तेरे ओष्ठो से प्रतिबिंबित रश्मि से जीवन का प्रभात है 
तेरे प्रकाश में ही केवल,  मेरा जीवन प्रारंभ  और समाप्त है
कल्पना में तुम हो और सचाई  में , तेरा रूप हर जगह है 
भूल कैसे सकता तुम्हे,  जब सब तेरे रंग में ही रंगा है ||

नदी के बहते जल सा मचलता हुआ तेरा मन है 
जैसे धूप में चमकता निर्मल सुन्दर श्वेत वसन है 
मासूमियत है तेरे हर एक अंग में समायी है 
अनुपमा हो तुम, तुम जैसी रब ने एक ही बनायीं  है ||

नेत्र में स्पष्ट दिखती, हृदय की सरलता है 
तेरे कहे हर शब्द में मकरंद सी मधुरता है
तेरी एक पुकार में बर्फ क्या पत्थर भी पिघलता है 
अनुपमा हो तुम, पूर्णता तुम्हारी ही संकल्पना है ||

Tere Nishan

तेरे निशाँ 

फिर से जिंदगी के उस मुकाम पर खड़ा हूँ |
सवाल तो कई है लेकिन जवाबो का पता नहीं |
वफ़ा तो याद, पर ना मालूम, कि क्या खता रही |
जो पता तूने दिया खुद, उस पर ही तेरा पता नहीं ||

इतनी दूर यूँ चला आया मैं, तेरे इश्क में थी ऐसी इबादत,
आँखों में  बेताबी थी और दिल में सिर्फ मोहब्बत |
तू ना थी साथ और पथ पर आई बहुत सी रुकावट ,
गम ना था उस दर्द का, केवल एक है अब शिकायत,
मजिल पर तो मैं पहुँच गया लेकिन तेरा कोई निशाँ नहीं ,
जो पता तूने दिया खुद,  उस पर ही  तेरा पता नहीं ||

नभ पर सप्तऋषि सा, तुम्हारे जीवन का संकेत तो दिखता है, 
उस दिशा में देखू तो ना ध्रुव, ना  कोई अवशेष झलकता है  |
तुम आये थे तो  इस ओर, तेरे पैरो के निशान मैं जानता हूँ |
तुम रोये थे, मिटटी के मिली तेरे आंसूओ  की खुशबू मैं पहचानता हूँ  |
तेरी हर एक बात मुझे याद, तड़पा सता रही ,
जो पता तूने दिया खुद, उस पर ही  तेरा पता नहीं ||

सफ़र तो था साथ किया शुरू, प्यार ही था केवल एक कायदा |
ना जाने कब बिछड़े  तुम, पर फिल मिलने का था एक वायदा |
मेरे आने में थोड़ी देर हुई, क्या उसकी ऐसी सजा मिली | 
इंतजार  तो अभी भी करेंगे, हार मानने की अभी रजा नहीं | 
अनजान पंक्षियों को सुनने की कोशिश करता, शायद ये कुछ बता रही, 
जो पता तूने दिया खुद,  उस पर ही  तेरा पता नहीं ||

- अभिषेक कुमार गुप्ता