Tuesday 24 April 2012

स्वप्न सुंदरी

स्वप्न सुंदरी
 

वनमध्य तालाब के अस्थिर जल में
चन्द्रिका की सुन्दर आभा सी ,
स्वप्न में आते तुम
हरदिन, मेरे, धुंधले साया सी  |


स्तभ्ध आकाश में पूर्ण चन्द्र को जैसे
आवृत करती, रात्रि कृष्णता चतुर्दिशा से,
दुग्ध श्वेत तेरे मुख को सुशोभित
कृष्ण ओढ़नी  है, प्रकीर्णित, पवन से |


सीमित प्रकाश में भी द्युतिमान है
दूर, तेरा शरीर, तेरे मुख के ओज से,
शत कँचपृष्ठों से प्रतिम्बित किरणों के योग हो 
महल रोशन होता, जैसे लघु दीप का प्रकाश से |

मुस्कुराते तुम  जो  देख  मुझे ,
और जो छूने को हाथ बढाता मैं यूँ,
पलकों के हिलने से बनी हवा झकोरो  से
मिट जाते तुम, जल से स्वर्णाभा ज्यूँ   ||

4 comments:

  1. वनमध्य तालाब के अस्थिर(mmoving) जल में
    चन्द्रिका (moonlight) की सुन्दर आभा (reflection) सी ,
    स्वप्न (dream) में आते तुम
    हरदिन, मेरे, धुंधले (unclear) साया (shadow) सी |

    स्तभ्ध(silent) आकाश (sky) में पूर्णचन्द्र (full moon) को जैसे
    आवृत(cover) करती, रात्रि कृष्णता (darkness of night) चतुर्दिशा (from all directions) से,
    दुग्धश्वेत (milkywhite) तेरे मुख को सुशोभित(decorate)
    कृष्ण ओढ़नी (black chunni) है, प्रकीर्णित (scatterd), पवन(wind) से |
    सीमित=limited प्रकाश=light में भी द्युतिमान=shining है
    दूर, तेरा शरीर=body, तेरे मुख के ओज =light, brightnessसे,
    शत=hundred कँच= mirror पृष्ठों =plates से प्रतिम्बित =reflected किरणों के योग = addition of all light (reflected) rays हो

    मुस्कुराते तुम जो देख मुझे ,
    और जो छूने (touch) को हाथ बढाता मैं यूँ,
    पलकों (eyelids )के हिलने से बनी हवा झकोरो (wind splashes) से
    मिट जाते तुम, जल से स्वर्णाभा (golden reflections ) ज्यूँ ||

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